
डॉ. अनिल द्विवेदी
अगर संसद देश के लोकतंत्र का मंदिर है तो छत्तीसगढ़ में यह मंदिर हमारी विधानसभा है और इसके उपर सार्वभौम है देश का संविधान जिसने विधायिका को असीमित शक्तियां देकर उसे देश का मजबूत स्तंभ बनाया है. गुजरे विधानसभा सत्र में विधायकों ने इन्हीं शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए विशेषाधिकार हनन का नोटिस भेजा है. लगभग 15 दिनों तक चले इस सत्र में हमने सत्ता पक्ष की दरियादिली देखी तो विपक्ष की अराजक दादागिरी भी. ठहाकों की गूंज के बीच कुतर्क के तीर भी चलते देखे. और हां, संसदीय विमर्श को अपना रास्ता भटकते हुए भी पाया.
सबसे ज्यादा मुखर हुए भाजपा विधायक अजय चंद्राकर और बृजमोहन अग्रवाल. दोनों की विधानसभा के अंदर प्रतिगामी इमेज बनी है. संसदीय परंपराओं का पालन हो, विधायकों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा हो, इसकी गुहार उन्होंने हमेशा लगाई ठीक वैसे ही जैसे रात को चौकीदार यह कहते हुए सावधान करता है कि ‘जागते रहो. सनद रहे कि दोनों ही श्रेष्ठ विधायक रह चुके हैं. लेकिन चंद्राकर ने सनसनाते तर्कों के साथ, चेतावनीभरे लहजे में पेश करते हुए कहा कि ‘हम किस पर भरोसा करें. विपक्ष को भरोसे में लेकर कुछ तय होता है और सदन में आकर उससे मुंह मोड़ लिया जाता है.‘ यह कहते हुए भाजपा विधायक दल ने सदन का बहिष्कार कर दिया.
इसी विमर्श का हिस्सा संसदीय कार्य मंत्री रवीन्द्र चौबे भी बने. उन्होंने विपक्ष को घेरते हुए कहा कि अध्यक्षजी, 70 विधायक ढाई घण्टा बोलेंगे और सामने के यानि भाजपा के 16 विधायक साढ़े तीन घण्टा बोलेंगे, यह क्या है! इसे देखना होगा! बहस के बीचोंबीच समझ लें कि विधानसभा में कुछ भी बेमकसद नहीं होता. यहां उपस्थिति, अनुपस्थिति, मौन हो या मुखरता, सबकी अपनी अहमियत होती है. फिर सवाल जागृत लोकतंत्र में नही उठेंगे तो कहां उठेंगे. कभी-कभी आरोप लगेंगे तो कुछ गलतफहमियां भी पैदा हो सकती हैं, पर बदनीयती न हो तो उन पर आसानी से पार पाया जा सकता है.
जैसे स्कूल में एक प्रिंसिपल होता है, मंदिर में पुजारी और परिवार में पिता, वैसे ही विधानसभा का एक अध्यक्ष होता है. चारों पदवियां देहात्मबुदिध की प्रतीक हैं. गुजरे साढ़े चार साल में हमने देखा कि विधानसभा अध्यक्ष के रूप में डॉ. महंत अपने इस कर्तव्य को निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से अच्छी तरह निभा रहे हैं. अध्यक्ष के तौर पर संविधान ने जो शक्तियां उन्हें प्रदान की हैं, उसी के दम पर वे सदन चलाते हैं. सदन को कैसे चलाना है, यह तो वे ही तय करेंगे. ऐसा एक क्षण भी प्रतीत नही हुआ कि सरकार के समर्थक विधायक होते हुए उन्होंने कभी सत्तापक्ष को बख्शा हो या विपक्ष को फंसाया हो. कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह विपक्षी विधायकों पर कई बार हमलावर हुए और डॉ. महंत ने उन्हें ऐसा ना करने के लिए टोका. जब सिंह नही माने तो महंत ने कड़े शब्दों के साथ कहा कि बैठ जाइए, मैंने आपको बोलने की अनुमति नही दी है!
बोध आज यह है कि विशेषाधिकार भंग का प्रस्ताव एक घातक हथियार के तौर पर विधायकों के पास है जिसके इस्तेमाल के बाद सरकार को जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ता है. एक तरह से यह ऐसा जाल है जो किसी भी समुद्र में फेंका जा सकता है और किसी मछली को मालूम नही है कि उसका दायरा कहां तक है और कौन इसमें फंस सकता है इसलिए इस सत्र में भाजपा विधायकों ने इसका भी इस्तेमाल कर लिया. भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा एवं सौरभ सिंह ने मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, सचिव सामान्य प्रशासन विभाग के विरूद्ध विशेषाधिकार भंग की सूचना 13 मार्च 2023 को दी गई. हालांकि इसका संदर्भ हम नही दे सकते क्योंकि यह विधानसभा अध्यक्ष के पास लंबित है. उनके फैसलों के आगे किसके ताजिए ठंडे होंगे और किसके नही, यह वक्त बताएगा.
आंखें फटी रह जाने वाली बात यह है कि इसके दायरे में प्रदेश के मुखिया भी आ गए. भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल एवं अजय चंद्राकर ने खादय मंत्री अमरजीत भगत के विरूद्ध विशेषाधिकार भंग की सूचना दी है. यह 19 अगस्त 2020 को दी गई थी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विरूद्ध भी भाजपा विधायक अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा एवं सौरभ सिंह ने विशेषाधिकार भंग की सूचना दी है. यह 21 जुलाई 2022 को दी गई थी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विरूद्ध भी एक और विशेषाधिकार भंग की सूचना भाजपा विधायक अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा एवं सौरभ सिंह ने दी है. यह 21 जुलाई 2022 को दी गई थी. वन मंत्री मोहम्मद अकबर के विरूद्ध भी भाजपा विधायक अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा एवं सौरभ सिंह ने विशेषाधिकार भंग की सूचना दी है. यह भी 21 जुलाई 2022 को दी है. कांग्रेस विधायक मोहन मरकाम के विरूद्ध भी भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने विशेषाधिकार भंग की सूचना 10 नवंबर 2022 को दी है.
पहले यह जानें लंे कि विशेषाधिकार हनन होता क्या है. जब कोई व्यक्ति या प्राधिकारी व्यक्तिगत रूप से सदस्यों के या सामूहिक रूप से सभा के किसी विशेषाधिकार, अधिकार तथा उन्मुक्ति की अवहेलना करता है, या उनका अतिक्रमण करता है तो इस अपराध को विशेषाधिकार भंग कहा जाता है. जिसके लिये सभा द्वारा दंड दिया जा सकता है. विशिष्ठ विशेषाधिकारों के भंग किये जाने के मामलों के अतिरिक्त, सभा के प्राधिकार या गरिमा के विरूद्ध आपराधिक कार्यवाहियां, यथा, उसके विधि सम्मत आदेशों की अवज्ञा या उसके सदस्यों अथवा अधिकारियों के बारे में अपमानजनक लेख आदि का प्रकाशन करना भी सभा की अवमानना के रूप में दंडनीय है.
उपरोक्त नोटिसों पर अंतिम फैसला विधानसभा अध्यक्ष को ही करना है जिसे और कहीं चुनौती नही दी जा सकती. नोटिस देने के पीछे विधायकों का क्या हेतु है और इस पर फैसला आने में देरी क्यों हो रही है, इस पर चर्चा करना बेमानी होगा लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि चार-चार सालों से नोटिस पर कोई फैसला अब तक नही हो सका! इस लेख के पीछे का असल सवाल नेति नेति के रास्ते से सच्चाई तक पहुंचने का है. भारत में संसद या विधानसभा सार्वभौम नही है संविधान सार्वभौम है इसलिए अदालत की तरह विधानसभा की मानहानि नही होने दी जा सकती.
पत्रकार की भाषा के सहारे से कहूं तो ये वही छत्तीसगढ़ विधानसभा है जिसके एक नियम को पूरे देश में सराहा गया और अन्य राज्यों ने अपनाया भी है. कोई विधायक प्रदर्शन करते हुए यदि सदन के गर्भगृह वह क्षेत्र जहंा विधानसभा अध्यक्ष बैठते हैं के पास पहुंच जाए तो अपने आप निलंबित हो जाता है. यह आदर्श प्रतिमान हमारी विधानसभा ने स्थापित किया है. इसलिए कांग्रेस सरकार के विधायकों और मंत्रियों को समझना होगा कि संसदीय परंपराओं के पालन की पहली जिम्मेदारी उनकी है. सत्ताकांक्षा में अकुलाए माननीयों से अनुरोध है कि वे आसंदी की गरिमा बनाए-बचाए रखेंगे. और हां, विपक्ष को यह डर भी होना चाहिए कि अगर वे अपनी जिम्मेदारी से भागेंगे तो राज्य का मतदाता उन्हें देख रहा है. उसकी दादागिरी स्वीकार नही होगी.
( लेखक दैनिक प्रखर समाचार के संपादक हैं )
